सत्तावन का युद्ध

सत्तावन का युद्ध खून से
लिखी गई कहानी थी 
वृद्ध युवा महिलाओं तक
में आई नई जवानी थी
आज़ादी के परवानों ने
मर मिटने की ठानी थी !

क्रांति संदेशे बाँट रहे थे
छदम वेश में वीर -जवान
नीचे सब बारूद बिछी थी
ऊपर हरा भरा उद्यान 
मई अंत में क्रांतिवीर को
भूस में आग लगानी थी !

मंगल पांडे की बलि ने
संयम का प्याला तोड़ दिया
जगह-जगह चिंगारी फूटी
तोपों का मुँह मोड़ दिया
कलकत्ता से अंबाला तक
फूटी नई जवानी थी !

मेरठ कानपुर में तांडव
धू-धू जले फिरंगी घर
नर-मुंडों से पटे रास्ते 
गूँजे 'जय भारत' के स्वर
दिल्ली को लेने की अब
इन रणवीरों ने ठानी थी !

तलवारों ने तोपें छीनी
प्यादों ने घोड़ों की रास
नंगे-भूखे भगे फिरंगी
जंगल में छिपने की आस
झाँसी में रणचंडी ने भी 
अपनी भृकुटी तानी थी !

काशी इलाहाबाद अयोध्या
में रनभेरी गूँजी थी
फर्रूखाबाद, इटावा तक में
यह चिंगारी फूटी थी
गंगा-यमुना लाल हो गई
इतनी क्रुद्ध भवानी थी !

आज़ादी की जली मशालें
नगर, गाँव, गलियारों में
कलकत्ता से कानपुर तक
गोली चली बाज़ारों में
तांत्या, बाजीराव, कुंवर की
धाक शत्रु ने मानी थी !

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